Saturday, February 23, 2008

Kuch Khawab...

कुछ ख्वाब बह गए तो क्या... पलको को फिर मिला लेंगे... नए कुछ ख्वाब फिर सजा लेंगे... समझो तो इशारा कुदरत का... छालक गया कुछ पैमाने से तो क्या... मह्खाने से जाम फिर बना लेंगे...